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डोनाल्ड ट्रंप का खौफ? इजरायल को धमकी दे रहा लेकिन हमला नहीं कर रहा ईरान, शिया मुल्क के डर की वजह समझें

ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव के बीच एक अहम सवाल उठ रहा है – ईरान लगातार इजरायल को धमकी दे रहा है, लेकिन हमला नहीं कर रहा। क्या इसका कारण डोनाल्ड ट्रंप का खौफ है? यह सवाल इसलिए अहम है क्योंकि ईरान की रणनीति और प्रतिक्रिया में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है, और इसके पीछे ट्रंप का प्रभाव हो सकता है।

ईरान की धमकियां और ट्रंप का डर

हाल ही में ईरान ने इजरायल को बार-बार चेतावनी दी है कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम के मामले में इजरायल से कार्रवाई करेगा, लेकिन अब तक इजरायल पर किसी प्रकार का सीधा हमला नहीं किया गया है। इसके बजाय, ईरान की ओर से आतंकी समूहों और प्रॉक्सी ताकतों के जरिए इजरायल को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। यह स्थिति समझने के लिए हमें डोनाल्ड ट्रंप के शासन और उनके द्वारा उठाए गए कदमों पर गौर करना होगा।

डोनाल्ड ट्रंप का कड़ा रुख

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद, ईरान के लिए अमेरिका का रुख अत्यधिक कड़ा हो गया था। ट्रंप ने ईरान परमाणु समझौते (JCPOA) से अमेरिका को बाहर निकाल लिया था और ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे, जिनसे ईरान को गहरा नुकसान हुआ था। इसके साथ ही, ट्रंप ने इजरायल के साथ अपने रिश्तों को और मजबूत किया था, जिससे ईरान पर दबाव और बढ़ गया। ट्रंप के शासन में ईरान के खिलाफ इजरायल को हर संभव सैन्य और कूटनीतिक सहायता मिली, और ट्रंप ने यह स्पष्ट कर दिया था कि यदि इजरायल पर कोई हमला हुआ तो अमेरिका, इजरायल के साथ खड़ा रहेगा।

ईरान को डर है अमेरिका से

ईरान के अधिकारियों का मानना है कि ट्रंप के रहते हुए यदि उन्होंने इजरायल पर हमला किया, तो अमेरिका का कड़ा प्रतिशोध सामने आ सकता था। ट्रंप ने इजरायल के लिए मजबूत समर्थन दिया था, और ईरान को यह डर था कि इस तरह की कोई भी सैन्य कार्रवाई, अमेरिका की सीधे दखलअंदाजी का कारण बन सकती है। इसके साथ ही, ट्रंप ने ईरान के उच्चतम नेतृत्व को भी सीधे धमकी दी थी, जो अब भी ईरान के निर्णयों पर प्रभाव डालता है।

अभी भी ट्रंप का खौफ, बाइडन की नीति से बदलाव

हालांकि जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद, ईरान ने उम्मीद जताई कि अमेरिकी नीति में नरमी आएगी और परमाणु समझौते की दिशा में बातचीत शुरू हो सकती है। लेकिन बाइडन प्रशासन ने भी ईरान पर प्रतिबंधों को जारी रखा, जिससे ईरान को यह महसूस हुआ कि अमेरिका का रुख बदला नहीं है। इसके बावजूद, ईरान ने सीधे हमले से बचने की कोशिश की, क्योंकि वह जानता है कि अमेरिका और इजरायल के संयुक्त प्रयासों से किसी भी सैन्य टकराव का परिणाम ईरान के लिए विनाशकारी हो सकता है।

शिया मुल्क का डर: ईरान की रणनीति

ईरान, एक शिया मुल्क होने के नाते, अपने संप्रभुता और धार्मिक सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहता है। हालांकि ईरान के पास संवेदनशील परमाणु तकनीक और रॉकेट क्षमता है, लेकिन वह जानता है कि इजरायल और अमेरिका का मिलकर सामना करना उसके लिए एक खतरनाक कदम हो सकता है। ईरान की नीति हमेशा से यह रही है कि वह अपने प्रॉक्सी नेटवर्क और आतंकी समूहों के जरिए इजरायल को चुनौती दे, ताकि उसे सीधे युद्ध में न घसीटा जाए।

ईरान का फोकस: क्षेत्रीय ताकत बनना

ईरान का मुख्य लक्ष्य क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाना और शिया मुस्लिम समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इसके लिए वह सऊदी अरब, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) जैसे सऊदी-प्रभुत्व वाले देशों के खिलाफ प्रॉक्सी युद्ध चला रहा है। इसके अलावा, वह सिरिया, इराक और लेबनान में भी अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए काम कर रहा है।

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