मोदी होते तो सऊदी क्राउन प्रिंस के बराबर में दिखते… अरब-इस्लामिक समिट में शहबाज की ‘बेइज्जती’ पर भड़के पाकिस्तानी
अरब-इस्लामिक समिट में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की जो बेइज्जती हुई, उससे पाकिस्तानी नेतृत्व और जनता में खासा गुस्सा देखने को मिला है। इस समिट में शहबाज शरीफ को जो अहमियत मिली, वह पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका था। खासकर जब सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ उनकी उपस्थिति की तुलना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की जा रही है, तो इस घटना ने पाकिस्तान में एक नई बहस को जन्म दिया है।
समिट में शहबाज शरीफ की ‘बेइज्जती’
अरब-इस्लामिक समिट में शहबाज शरीफ को जिस तरह की तवज्जो मिली, उससे पाकिस्तान में यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह पाकिस्तान की घटती अंतरराष्ट्रीय ताकत का संकेत है। समिट में जब विभिन्न देशों के नेता मंच पर पहुंचे, तो शहबाज शरीफ को सऊदी क्राउन प्रिंस के बराबर में जगह नहीं मिली, जो पाकिस्तान के लिए अपमानजनक था। इसके बजाय उन्हें अन्य नेताओं के बीच में खड़ा किया गया, जबकि सऊदी क्राउन प्रिंस और अन्य महत्वपूर्ण नेता मंच के सामने बैठे थे।
भारत की तुलना में पाकिस्तान की स्थिति
पाकिस्तानी मीडिया और नेताओं ने इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां होते तो उन्हें सऊदी क्राउन प्रिंस के बराबर में स्थान मिलता। यह बयान पाकिस्तान के अंदर के असंतोष को दिखाता है कि भारत की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय स्थिति के मुकाबले पाकिस्तान का स्थान कहीं न कहीं कम हो रहा है।
सोशल मीडिया पर भड़की बहस
पाकिस्तानी सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर बहस तेज हो गई है। कई पाकिस्तानी नागरिक और नेता इस बात पर दुख व्यक्त कर रहे हैं कि कैसे भारत की कूटनीतिक सफलता के चलते भारत के पीएम को अधिक तवज्जो मिलती है, जबकि पाकिस्तान के पीएम को इस समिट में तवज्जो नहीं दी गई। कुछ पाकिस्तानियों ने यह भी कहा कि अगर मोदी इस समिट में मौजूद होते तो भारत का कद और बढ़ जाता, जैसा कि उसे पहले कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देखा गया है।
पाकिस्तान के लिए क्या संकेत?
यह घटना पाकिस्तान की कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय छवि के लिए एक बड़ा संकेत हो सकती है। पाकिस्तान के लिए यह संकेत है कि अब उसे अपनी विदेश नीति को नए सिरे से देखना और सुधारने की जरूरत हो सकती है, क्योंकि भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति को मजबूत किया है, जबकि पाकिस्तान पीछे छूटता जा रहा है। पाकिस्तान को अब अपने संबंधों को सुधारने और अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए सशक्त कदम उठाने की आवश्यकता महसूस हो रही है।