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दिल्ली हाईकोर्ट ने ‘भ्रूण व्यापार’ से संबंधित याचिका पर विचार करने से किया इंकार, कहा – ‘यह राज्य की नीति है’

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें भ्रूण को थर्ड पार्टी द्वारा गोद लेने से रोकने वाले कानून को चुनौती दी गई थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि ‘भ्रूण व्यापार’ को अनुमति नहीं दी जा सकती और यह राज्य की नीति के अंतर्गत आता है।

अदालत का निर्णय और टिप्पणी

  1. याचिका का संक्षिप्त विवरण:
    • याचिका में भ्रूण गोद लेने पर रोक लगाने वाले कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने इस पर विचार करने की अपील की थी कि क्या थर्ड पार्टी को भ्रूण गोद लेने की अनुमति दी जा सकती है।
    • याचिका में आरोप लगाया गया था कि मौजूदा कानून भ्रूणों की सुरक्षा और उनके कानूनी अधिकारों के खिलाफ है।
  2. अदालत की टिप्पणी:
    • दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि ‘भ्रूण व्यापार’ को अनुमति देना संविधान और कानून के अनुरूप नहीं है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि भ्रूण को थर्ड पार्टी द्वारा गोद लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह राज्य की नीति के खिलाफ है।
    • अदालत ने इसे समाज की नैतिक और कानूनी मान्यताओं के अनुसार नकारात्मक माना और कानून के दायरे में इसे उचित ठहराया।

राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

  1. सरकारी नीति:
    • अदालत का यह निर्णय राज्य की नीति और समाज की नैतिक मान्यताओं के प्रति सुसंगत है। सरकार और नीति निर्माताओं के लिए यह निर्णय एक संकेत है कि भ्रूण गोद लेने के मुद्दे पर कठोर दृष्टिकोण अपनाया जाएगा।
    • यह निर्णय भ्रूणों की सुरक्षा और उनके लिए कानूनी प्रावधानों की पुष्टि करता है, जो राज्य की नीति का हिस्सा हैं।
  2. सामाजिक प्रतिक्रिया:
    • इस निर्णय के बाद, समाज के विभिन्न वर्गों से मिश्रित प्रतिक्रियाएँ आई हैं। कुछ ने अदालत के निर्णय को समर्थन दिया, जबकि अन्य ने इसे संभावित मुद्दों के रूप में देखा।
    • इस मुद्दे पर चल रही बहस ने भ्रूण गोद लेने की कानूनी और नैतिक जटिलताओं को उजागर किया है।

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