आलोचनात्मक लेखों पर पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज नहीं होने चाहिए, सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकारों के अधिकारों की सुरक्षा के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि आलोचनात्मक लेखों के लिए पत्रकारों पर आपराधिक मामले दर्ज नहीं किए जाने चाहिए। यह बयान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की आजादी के पक्ष में एक मजबूत संदेश है।
मामला और पृष्ठभूमि
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी एक ऐसे मामले में आई है, जिसमें एक पत्रकार के खिलाफ सरकार की आलोचना करने वाले लेख पर आपराधिक मुकदमा दर्ज किया गया था। पत्रकार ने अदालत से अपील की थी कि उनके खिलाफ दर्ज इस मामले को खारिज किया जाए, क्योंकि यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन है।
कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “पत्रकारों का काम सरकार या किसी भी संस्था की आलोचना करना और जनता के मुद्दों को सामने लाना है। यदि हर आलोचनात्मक लेख पर आपराधिक मामले दर्ज किए जाने लगें, तो यह प्रेस की स्वतंत्रता पर गहरा आघात होगा। आलोचना लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है और इसे अपराध के रूप में नहीं देखा जा सकता।”
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण है। पत्रकारों का काम केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि सरकार और सार्वजनिक संस्थानों के कामकाज की आलोचना करना भी होता है। प्रेस की स्वतंत्रता लोकतंत्र के मूल स्तंभों में से एक है और इसे कमजोर नहीं किया जाना चाहिए।
सरकार का रुख
हालांकि सरकार ने अपनी ओर से यह तर्क दिया कि पत्रकार ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है, जिससे उनकी छवि खराब हुई है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक लेख मानहानि या किसी अन्य अपराध की सीमाओं को पार नहीं करता, तब तक इसे आपराधिक मामले का आधार नहीं बनाया जा सकता।