Opinion: भारत अकेला शेर जिसने चीन को गर्दन से दबोचा और ड्रैगन की कराह निकल गई, यूं ही नहीं हुआ समझौता
भारत और चीन के बीच हुए सीमा विवाद के संदर्भ में समझौते ने भारतीय कूटनीति की प्रभावशीलता को उजागर किया है। भारत ने जिस प्रकार से स्थिति को संभाला और चीन को अपनी जगह दिखाते हुए वार्ता की, वह एक अकेले शेर की तरह नजर आता है, जिसने ड्रैगन को गर्दन से दबोच लिया।
भारत की कूटनीतिक मजबूती
- शक्ति प्रदर्शन: भारत ने अपने सैन्य और कूटनीतिक संसाधनों का प्रभावी इस्तेमाल किया। न केवल सीमा पर भारतीय सेना ने साहस और धैर्य से स्थिति को संभाला, बल्कि विदेश नीति के तहत भी भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति को मजबूती से पेश किया।
- साझेदारी का निर्माण: भारत ने अपने पारंपरिक सहयोगियों के साथ संबंधों को मजबूत किया और नई साझेदारियों की दिशा में कदम बढ़ाए। अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ अपने संबंधों को और गहरा किया, जिससे चीन को स्पष्ट संकेत मिला कि वह अकेला नहीं है।
चीन की कमजोरी
- आर्थिक दबाव: चीन की अर्थव्यवस्था ने पिछले कुछ वर्षों में चुनौतीपूर्ण समय का सामना किया है। भारत ने इस कमजोरी का उपयोग करते हुए वैश्विक मंच पर अपनी आवाज को मजबूती दी। ड्रैगन की कराह को सुनने के लिए दुनिया ने ध्यान दिया है कि चीन की आक्रामकता अब उसके लिए नुकसानदायक हो सकती है।
- संवेदनशीलता का एहसास: चीन ने भारतीय प्रतिक्रिया को देखते हुए समझा कि उसे किसी भी प्रकार के युद्ध या टकराव से बचना होगा। इसलिए उसने बातचीत के माध्यम से स्थिति को सामान्य करने का निर्णय लिया।
समझौते की वजह
- समझौते का महत्व: यह समझौता न केवल सीमा विवाद को सुलझाने का एक उपाय है, बल्कि यह भारत की कूटनीतिक शक्ति का भी परिचायक है। भारत ने स्पष्ट किया कि वह अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार के समझौते को स्वीकार करने के लिए तैयार है, लेकिन अपने हितों को लेकर कोई समझौता नहीं करेगा।
- भविष्य की दिशा: यह समझौता भविष्य में दोनों देशों के संबंधों को सामान्य करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। हालांकि, यह भी जरूरी है कि भारत सतर्क रहे और अपनी रणनीति को बनाए रखे।