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दिल्ली विधानसभा चुनाव में आंबेडकर की विरासत पर सियासत: कैसे होगा 12 आरक्षित सीटों पर असर?

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आंबेडकर की विरासत का सियासी असर

2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में आंबेडकर की विरासत पर सियासी बहस का बड़ा असर हो सकता है। दिल्ली की 12 आरक्षित सीटों पर आंबेडकर के योगदान को लेकर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP), और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच जोरदार सियासी लड़ाई देखने को मिल सकती है। इन पार्टियों के बीच यह मामला आंबेडकर के सम्मान और उनके प्रति कथित अनादर को लेकर खड़ा हुआ है।

आंबेडकर की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका और दलित समुदाय के लिए उनके संघर्ष का सम्मान एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। यह चुनावी बहस अब केवल राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का हिस्सा नहीं रही, बल्कि यह उस समाजिक ताने-बाने को प्रभावित करने का एक तरीका बन चुका है, जहां दलितों का वोट निर्णायक हो सकता है।


आंबेडकर के अनादर पर सियासी बहस

कांग्रेस और AAP दोनों ही आंबेडकर के कथित अनादर को लेकर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेल रहे हैं। दिल्ली में भाजपा के खिलाफ वोट बैंक बनाने के लिए इन दोनों दलों ने आंबेडकर के सम्मान को प्रमुख चुनावी मुद्दा बना लिया है। यह बहस केवल एक व्यक्तिगत आलोचना नहीं है, बल्कि इसे एक सामूहिक पहचान और समुदाय के अधिकारों की रक्षा से जोड़ा जा रहा है।

कांग्रेस पार्टी का दावा है कि भाजपा और AAP आंबेडकर की विचारधारा से इतर चल रहे हैं और उन्होंने अपनी सियासत में उन्हें तवज्जो नहीं दी है। वहीं, AAP भी खुद को दलितों और पिछड़ों के अधिकारों का हकदार बताते हुए भाजपा और कांग्रेस पर आंबेडकर के विचारों के खिलाफ सियासत करने का आरोप लगा रही है।


दिल्ली की आरक्षित सीटों पर सियासी असर

दिल्ली विधानसभा की 12 सीटें आरक्षित हैं, जहां पर दलित और पिछड़े वर्ग के वोटों का भारी प्रभाव है। ये सीटें उन समुदायों के लिए महत्वपूर्ण हैं जिनका ध्यान इन पार्टियों ने आंबेडकर के मुद्दे को लेकर खींचा है। पार्टी अब यह समझने की कोशिश कर रही हैं कि आंबेडकर के मुद्दे पर किसका रुख सशक्त हो सकता है। इन सीटों पर सियासी समीकरण चुनावी नतीजों को प्रभावित करने के लिए काफी अहम हो सकते हैं।

आरक्षित सीटों पर इन पार्टियों के बीच सियासी संघर्ष और आरोप-प्रत्यारोप इस बात पर निर्भर करेगा कि वे किस तरह से आंबेडकर की विचारधारा को अपने चुनावी कैंपेन में शामिल कर पाती हैं। अगर यह सियासी लड़ाई सही दिशा में बढ़ती है, तो दिल्ली के दलित समुदाय के वोट इन पार्टी गठबंधनों के पक्ष में जा सकते हैं।


भाजपा का रुख

भाजपा इस मुद्दे पर अन्य पार्टियों से अलग रुख अपनाती दिख रही है। भाजपा ने आंबेडकर की विचारधारा का सम्मान करते हुए कई योजनाएं चलाई हैं, लेकिन पार्टी पर यह आरोप भी लगते रहे हैं कि वह दलित समुदाय के मुद्दों को केवल चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल करती है। अब भाजपा की सियासत में आंबेडकर का मुद्दा एक बड़ा सवाल बन चुका है, क्योंकि वह इस मुद्दे पर अपनी साख बचाने की कोशिश कर रही है।


निष्कर्ष

दिल्ली विधानसभा चुनावों में आंबेडकर की विरासत का सियासी प्रभाव बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस, AAP और BJP के बीच चल रही सियासी बहस 12 आरक्षित सीटों पर महत्वपूर्ण असर डाल सकती है। यह चुनावी मुद्दा केवल आंबेडकर के सम्मान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दिल्ली के सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित कर सकता है। अगले कुछ महीनों में इस सियासी बहस का और ज्यादा प्रभाव देखने को मिल सकता है, और यह तय करेगा कि कौन सी पार्टी इन सीटों पर जीत हासिल करती है।

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