’10 साल में 110 गालियां दीं’, खरगे-नड्डा के बीच छिड़ा ‘लेटरवॉर’
भारतीय राजनीति में इस सप्ताह एक नई तकरार सामने आई है, जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अध्यक्ष जेपी नड्डा के बीच एक ‘लेटरवॉर’ छिड़ गया। इस राजनीतिक विवाद में दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाए हैं और छींटाकशी की है।
खरगे और नड्डा के बीच विवाद:
विवाद की शुरुआत उस समय हुई जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने BJP और इसके नेताओं पर तीखे आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने पिछले 10 सालों में 110 बार उन्हें और उनकी पार्टी को गालियाँ दी हैं। इसके साथ ही, खरगे ने भाजपा की नीतियों और नेतृत्व की आलोचना की और उनकी विफलताओं का उल्लेख किया।
नड्डा का जवाब:
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए, BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मल्लिकार्जुन खरगे की टिप्पणियों को आड़े हाथों लिया और उन्हें “फेल प्रोडक्ट” बताया। नड्डा ने कहा कि खरगे के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने राजनीति में कोई उल्लेखनीय सफलता नहीं प्राप्त की है और उनकी आलोचनाएँ निराधार हैं। उन्होंने खरगे की आलोचनाओं को पार्टी की एक कमजोर रणनीति के रूप में प्रस्तुत किया।
लेटरवॉर का विवरण:
दोनों नेताओं के बीच यह ‘लेटरवॉर’ सार्वजनिक पत्रों और प्रेस विज्ञप्तियों के माध्यम से जारी है। खरगे और नड्डा ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप किए हैं, जिससे राजनीतिक माहौल में गर्मी आ गई है। इस विवाद ने भारतीय राजनीति में नए विवाद की शुरुआत की है और यह दिखाता है कि आगामी चुनावों में मुकाबला कितना तीव्र हो सकता है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ:
इस विवाद पर राजनीति के विभिन्न पंडितों और विशेषज्ञों ने अपनी प्रतिक्रियाएँ दी हैं। कई लोगों ने इसे भारतीय राजनीति में बढ़ती अनम्यता और व्यक्तिगत हमलों का प्रतीक बताया है। वहीं, कुछ ने इसे एक सामान्य राजनीतिक संघर्ष के रूप में देखा है जो चुनावों के दौरान अक्सर होता है।
सामाजिक मीडिया और मीडिया में चर्चा:
इस ‘लेटरवॉर’ के चलते सोशल मीडिया और समाचार चैनलों पर भी यह विवाद प्रमुख चर्चा का विषय बन गया है। लोगों और राजनीतिक विश्लेषकों ने इस विवाद पर अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएँ दी हैं और इस बात की चर्चा की है कि यह विवाद आगामी चुनावों की राजनीति को किस तरह प्रभावित कर सकता है।
भविष्य की दिशा:
खरगे और नड्डा के बीच यह विवाद आगामी चुनावों और राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर सकता है। दोनों दलों ने इस विवाद को अपने-अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की है और यह देखना दिलचस्प होगा कि इस विवाद का असर चुनावी परिणामों पर किस प्रकार होता है।
इस प्रकार का राजनीतिक विवाद भारतीय राजनीति के लिए नया नहीं है, लेकिन इसका सार्वजनिक और तीव्र स्वरूप इसे एक महत्वपूर्ण घटना बना देता है।

