भारत के बाद ईरानी नौसेना के साथ आए सऊदी अरब के युद्धपोत, दुश्मनी भुलाकर शिया-सुन्नी सेना क्यों आई साथ?
सऊदी अरब के युद्धपोतों ने ईरानी नौसेना के साथ मिलकर एक अनोखी सहयोग की मिसाल पेश की है, जो एक समय पर दोनों देशों के बीच गहरे राजनीतिक और धार्मिक मतभेदों के बावजूद हुआ है। यह घटना क्षेत्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाती है।
घटनाक्रम का सार
- साझा नौसैनिक अभ्यास: भारत के साथ द्विपक्षीय सहयोग के बाद, सऊदी अरब ने अपने युद्धपोतों को ईरानी नौसेना के साथ जोड़कर एक संयुक्त नौसैनिक अभ्यास किया है। इस अभ्यास में दो देशों की नौसेना ने मिलकर समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद से लड़ाई के तरीकों पर चर्चा की।
- धार्मिक विभाजन के बावजूद सहयोग: सऊदी अरब और ईरान के बीच शिया-सुन्नी विवाद लंबे समय से चला आ रहा है, लेकिन वर्तमान स्थिति में दोनों देश साझा खतरों को देखते हुए सहयोग करने पर सहमत हुए हैं। यह कदम एक नई रणनीति का हिस्सा है, जिसमें दोनों देश एक-दूसरे के साथ मिलकर समुद्री सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहते हैं।
पीछे के कारण
- क्षेत्रीय सुरक्षा: समुद्र में बढ़ती दुष्कर्म गतिविधियों, जैसे कि समुद्री डकैती और आतंकवादी हमले, ने दोनों देशों को एकजुट होने के लिए प्रेरित किया है। इस सहयोग से दोनों देश समुद्री क्षेत्रों में सुरक्षा बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
- आर्थिक हित: ईरान और सऊदी अरब दोनों ही कच्चे तेल के बड़े उत्पादक देश हैं। क्षेत्र में स्थिरता उनके आर्थिक हितों को भी सुरक्षित रखती है।
- भविष्य की संभावनाएं: इस सहयोग के जरिए दोनों देशों के बीच भविष्य में और अधिक साझेदारी की संभावना है। यह भी हो सकता है कि वे अन्य क्षेत्रीय मुद्दों पर भी एकजुट होकर काम करें।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ
- प्रतिक्रिया से डर: अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने इस सहयोग पर ध्यान दिया है और इसे संभावित रूप से खतरे के रूप में देखा है। वे इस क्षेत्र में अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिए चिंतित हैं।
- क्षेत्रीय सहयोग: कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार का सहयोग अन्य देशों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है, जिससे वे भी अपने मतभेदों को भुलाकर एकजुट हो सकते हैं।