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अखिलेश की रणनीति फेल: ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे से भाजपा की बड़ी जीत

उत्तर प्रदेश के हालिया उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 9 में से 7 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि समाजवादी पार्टी (सपा) को केवल 2 सीटों पर संतोष करना पड़ा। इस परिणाम ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव की रणनीति और उनके ‘PDA’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े किए हैं।

‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे की भूमिका:

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा प्रचारित ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारा भाजपा के लिए एक प्रभावी चुनावी हथियार साबित हुआ। इस नारे ने विपक्षी दलों के गठबंधन की कमजोरियों को उजागर किया और मतदाताओं के बीच एकजुटता का संदेश प्रसारित किया। अखिलेश यादव ने इस नारे को ‘नकारात्मक’ और ‘निराशा का प्रतीक’ बताया, लेकिन चुनाव परिणामों से स्पष्ट होता है कि यह नारा भाजपा के पक्ष में काम आया।

कांग्रेस से दूरी का असर:

सपा ने उपचुनावों में कांग्रेस से दूरी बनाए रखी, जिससे विपक्षी वोटों का विभाजन हुआ और भाजपा को लाभ मिला। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा होता, तो परिणाम भिन्न हो सकते थे।

भाजपा की रणनीति:

भाजपा ने उपचुनावों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में आक्रामक प्रचार किया। ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारों के माध्यम से उन्होंने विपक्षी दलों के गठबंधन की कमजोरियों को उजागर किया और मतदाताओं को एकजुट रहने का संदेश दिया।

अखिलेश यादव के लिए सबक:

इन चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि अखिलेश यादव को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। कांग्रेस से दूरी बनाए रखने और ‘PDA’ फॉर्मूले पर निर्भर रहने के बजाय, उन्हें व्यापक गठबंधन और मजबूत जमीनी संगठन पर ध्यान देना होगा।

निष्कर्ष:

उत्तर प्रदेश के उपचुनावों के परिणाम सपा के लिए एक चेतावनी हैं। यदि अखिलेश यादव आगामी चुनावों में सफलता चाहते हैं, तो उन्हें अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा और विपक्षी दलों के साथ मिलकर एक मजबूत मोर्चा बनाना होगा।

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